About Me

Saeed Ahmad, Date of Birth : August 09, 1963 Birth Place : Kanpur Marital Status : Married Cadre : NCC Profession : Journalism (Media consultant, Web & Print)

Thursday, 11 June 2015

क्यों कि मै हिजड़ा हूं


ऐ माँ ; ओ बापू, दीदी और भईया, आपका ही बेटी या बेटा था, पशु नही जन्मा था परिवार में, आपके ही दिल का, चुभता सा टुकड़ा हूँ , क्यों कि मै हिजड़ा हूं। कोख की धरती पर आपने रोपा था, नौ माह जीवन सत्व चूसा तुमसे मॉ, फलता भी पर कटी गर्भनाल जड़ से उखाड़ा हूं, क्यों कि मै हिजड़ा हूं। लज्जा का विषय क्यों हूं मॉ मेरी, अंधा,बहरा या मनोरोगी तो नही था मै, मै ही बस ममतामयी गोद से बिछड़ा हूं, क्यों कि मै हिजड़ा हूं। अर्ध नारीश्वर भी भगवान का रुप मान्य है, हाथी,बंदर,बेल सब देव तुल्य पूज्य है, मै तो मानव होकर भी सबसे पिछड़ा हूं, क्यों कि मै हिजड़ा हूं।

'अगले जनम मोहे हिजड़ा न कीजो'


'अगले जनम मोहे हिजड़ा न कीजो' बेटा घर का राज है तो बेटी घर की लाज. लेकिन दोनों का मिश्रित रूप किन्नर अर्थात हिजड़ा पैदा हो तो क्यों गिर जाती है सब पर गाज. इस नौनिहाल बच्चे को उसको जन्म देने वाले ही या तो फेंक देते है या फिर एसों के हाथों सौंप देते है जिनपर न तो इनको विश्वास होता है और न ही इस वर्ग की ये लोग इज्जत करते है. हद तक की उन्हें पसंद नहीं करते. सिर्फ लोकलाज का वास्ता समझकर अपने लखते जिगर को अनजान हाथों में दे देते है. अपने अरमानों, अपनी प्राथनाओं में पुत्र-पुत्री की कल्पना पाले यह समाज जितना उत्साह और उल्हास से भरा होता है वही उदास और खौफजदा क्यों हो जाता है. जिसे अपनों से प्यार दुलार मिलना चाहिए वह जन्म से ही तिरस्कार उसका भाग्य बन जाता है. जन्म से लेकर जीवनभर प्रताड़ना झेलने वाला हिजड़ा आखिर यही दुआ करेगा कि अगले जनम मोहे हिजड़ा ना कीजो. इसके लिए यह कई परम्पराओं को अपनाते भी है. जिनमे मरने के बाद मृतक को जूते अथवा झाडू छुलाने की परम्परा भी है. कुछ लोग इस्लाम धर्म भी अपना लेते है क्योंकि इस्लाम में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं है. जबकि किन्नर के अर्धनारीश्वर यानी शिव उनके आराध्य देव हैं। लेकिन वे बहुचरा माता और अरावान (महाभारत के अर्जुन के पुत्र) की विशेष पूजा करते हैं। इनकी संख्या के बारे में सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं है। मोटा अनुमान है कि पूरे देश में इनकी तादाद 10-15 लाख होगी। बताते हैं कि पूरा हिजड़ा समुदाय सात घरानों में बंटा हुआ है। हर घराने का मुखिया एक नायक होता है जो चेलों की शिक्षा-दीक्षा के लिए गुरुओं की नियुक्ति करता है। ताली बजाना और लचक-मटक कर चलना हिजड़ों का स्वाभाविक गुण नहीं है। यह एक सीखी हुई ‘कला’ है। यह भी गौरतलब है कि कोई जान-बूझकर हिजड़ा नहीं बनता। वो जन्म से ही लैंगिक रूप से विकलांग होते हैं। देश के 90 फीसदी हिजड़े ऐसे ही हैं। केवल 10 फीसदी हिजड़े ऐसे हैं जो जन्म से होते तो पुरुष हैं, लेकिन दर्दनाक ऑपरेशन से उनके जननांग हटाये जाते हैं। इसके पीछे वैसे ही अपराधियों का हाथ होता है, जैसे अपराधी हाथ-पैर काटकर बच्चों से भीख मंगवाते हैं। पुराने भारतीय ग्रंथों में भी इन्हें तृतीय प्रकृति कहा गया है। सारी दुनिया में इनकी मौजूदगी है। लेकिन इनकी दुर्गति कमोवेश हर जगह ही है। ये एक तरह के विकलांग हैं। लेकिन विकलांगों जैसी कोई सहूलियत इन्हें नहीं मिलती। परिवार में जन्मते ही इन्हें फेंक दिया जाता है। फिर इन्हें अपने गुजारे के लिए अंधेरे और अंधविश्वासों से भरी ऐसी दुनिया में शरण लेनी पड़ती है जो शायद किसी शापित नरक से भी बदतर है। कहने को किन्नर या हिजड़े अब राजनीति में भी आ चुके हैं, लेकिन उनसे जुड़े मानवाधिकारों की चर्चा यदाकदा ही होती है। हिजड़ों को वोट देने का अधिकार भारत में 1994 में ही मिला। उसके बाद से 1999 में शहडोल से चुनकर आई शबनम मौसी देश की पहली किन्नर विधायक बनी। फिर तो कमला जान (कटनी की मेयर), मीनाबाई (सेहोरा नगरपालिका की अध्यक्ष), सोनिया अजमेरी (राजस्थान में विधायक), कमला बुआ मध्य प्रदेश के सागर की मेयर और आशा देवी (गोरखपुर की मेयर) सार्वजनिक हस्ती बन गईं। देहरादून के मेयर चुनावों में रजनी रावत नाम की किन्नर भी प्रत्याशी थी। इसके अतिरिक्त अभिनेत्री एवं माडल पद्मिनी प्रकाश ने एक समाचार चैनल पर समाचार वाचक की तरह शुरूआत की। अमृता अल्पेश सोनी को छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य में एचआईवी व एड्स पीड़ितों की देख रेख के लिए नोडल अधिकारी बनाया है। फैशन डिजायनर सिल्वी आधुनिक ब्यूटी पार्लर की श्रंखला चलाती है. लग्जरी जीवन जीती है. भारत सरकार के एक विभाग में किन्नर मणि थापा अपनी सेवाएँ दे रही है. सरकार की भेदभाव भरी नीतियों की वजह से काफी लोग अपनी पहचान छुपाकर नौकरी कर रहे है. जिनका खुलासा किसी घटना अथवा सेवानिर्वत्ति के बाद होता है. लेकिन राजनीति सहित अन्य क्षेत्रों में धमक के बावूजद समाज में हिजड़ों के खिलाफ भ्रम और हिंसा का बोलबाला है। और इस रवैये का स्रोत है अंग्रेज़ों के राज में बना 1871 का क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट, जिसमें 1897 में एक संशोधन के बाद स्थानीय शासन को आदेश दिया गया है कि वे सभी हिजड़ों के नाम और आवास का पूरा रजिस्टर रखें जो ‘बच्चों का अपहरण करके उनको अपने जैसा’ बनाते हैं, आईपीसी के सेक्शन 377 में आनेवाले अपराध करते हैं। ये गैर-जमानती अपराध है और इसमें छह महीने से लेकर सात साल तक की कैद हो सकती है। पुलिस आज भी आईपीसी के सेक्शन 377 के तहत जब चाहे, तब किन्नरों को अपने इशारों पर नचाती है। इस सेक्शन को खत्म करने की याचिका अभी तक कोर्ट में लंबित पड़ी है।

सिर्फ क़ानून नहीं सम्मान भी चाहिए

किन्नर समुदाय के हित में काम करने वाली समाजसेवी संगठन “इक-एहसास” ने सरकारों से मांग की है कि किन्नरों पर दिए गए आदेश को पूरी तरह अमलीजामा पहनाएं। सर्वोच्च न्यायालय ने किन्नरों के अधिकारों की रक्षा करने और उनकी मदद करने व उनसे भेदभाव और उनका दमन खत्म करने का आदेश दिया था। अप्रैल 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी थी कि लोगों को किन्नरों को तीसरे लिंग के रूप में मान लेना चाहिए और केवल सभी बुनियादी अधिकार तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि शिक्षा एवं रोजगार में विशेष लाभ भी मिलना चाहिए। संस्था ने कहा है, "भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने पिछले वर्ष अंतत: किन्नरों को मतदान का, शिक्षा प्राप्त करने या रोजगार पाने के अधिकार को स्वीकार किया।" अब यह अधिकारियों पर है कि वे उन लोगों के खिलाफ मामला चलाकर सर्वोच्च न्यायालय की व्यवस्था लागू करें जिन्होंने किन्नरों को सम्मान के साथ और बगैर तकलीफ के जीने का अधिकार नहीं दे कर उन्हें निशाना बनाया। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के एक वर्ष बाद भी उसे अमलीजामा पहनाने का काम रुका हुआ है। संगठन ने कहा कि भारतीय दंड विधान की धारा 377 के अनुसार परिपक्व वयस्कों के बीच समलैंगिक संबंध आपराधिक है और इससे किन्नर और होमोसैक्सुअल पुलिस प्रताड़ना, दोहन और उत्पीड़न की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील हैं।

आप प्रकृति के फूल, और किन्नर प्रकृति की भूल

जरा सोचिए आप को जीवनपर्यन्त किसी भयंकर मानसिक, सामाजिक और शारीरिक प्रताडना से गुजरना पडे और कारण के लिए आप नही प्रकृति उत्तरदायी है । तब आपके मन में इस दुनिया और दुनिया बनाने वाले ईश्वर, इस समाज और जन्म देने वाले माँ-बाप के प्रति क्या विश्वास पनपेगा। फिर भी यह समुदाय सभी से सब प्रकार की पीणा मिलने के बाद आशीष के लिए, दुआओं के लिए अपने हाथ उठाते है। क्षण भर के लिए ज़रा सोचिएं की जात-धर्म, ऊंच-नीच में घिरे समाज के बीच यह समुदाय किसी किन्नर को किसी भेदभाव के अपना लेते है। इतना ही नही ये किन्नर हर किसी की खुशी मे गाने-बजाने पहूँच जाते है, न उसकी जात देखते, न धर्म, न ऊँच-नीच और बदले मे इन्हे समाज क्या देता है घृणा और अपमान। इनके नाजो-नखरे देख अक्सर लोग हंस पड़ते हैं । अगर आप इनकी जिंदगी की असलियत जान ले तो शायद न किसी को हंसी आए और न ही उनसे घबराहट हो। आम इंसानों की तरह इनके पास भी दिल होता है, दिमाग होता है, इन्हें भी भूख सताती है, आशियाने की जरूरत इन्हें भी होती है । फिर भी उन्हें आम इंसानों की तरह नहीं समझा जाता, उन्हें बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता, उन्हें सरकार कोई आरक्षण नही देती, व्यवसायी वर्ग उन्हें नौकरी नहीं देता और तो और गाने बजाने और नाचने के अलावा कोई उनसे दोस्ती नहीं करता, उनसे बात नहीं करता क्योंकि वो समाज में हेय दृष्टि से देखे जाते है मानो वो कोई परग्रही हों। क्यों उन्हें इस तरह सामाजिक तिरस्कार झेलना पड़ता है ? क्यों समाज उनके प्रति लचीला रुख नहीं अपनाता ? सवाल बहुत से है लेकिन उत्तर नहीं। आखिर किन्नर पैदा कैसे होते है ? “इक-एहसास” संस्था के एक शोध एवं आधुनिक विज्ञान के अनुसार हॉर्मोनस् और गुणसूत्रो की अनियमिता के कारण किन्नर जन्म लेते है । हर मनुष्य में नर और नारी दोनों के लिए आवश्यक हॉर्मोनस् होते है, उनका कम या ज्यादा का अनुपात ही कुछ को पूर्ण नर और कुछ को पूर्ण नारी बनता है l जहाँ ये अनुपात गड़बड़ा जाता है वही किन्नर जन्म लेता है । परन्तु यदि आध्यात्म की दृष्टि से देखा जाये तो, चंद्रमा, मंगल, सूर्य और लग्न से गर्भाधान का विचार किया जाता है। इसमें माना जाता है कि ग्रहों की कुद्रष्टि के कारण किन्नर जन्म लेता है। इसके अनुसार ।।। 1। शनि व शुक्र अष्टम या दशम भाव में शुभ दृष्टि से रहित हों तो किन्नर (नपुंसक) का जन्म होता है। 2। छठे, बारहवें भाव में जलराशिगत शनि को शुभ ग्रह न देखते हों तो किन्नर (नपुंसक) होता है। 3। चंद्रमा व सूर्य शनि, बुध मंगल कोई एका ग्रह युग्म विषम व सम राशि में बैठकर एका दूसरे को देखते हैं तो किन्नर (नपुंसक) जन्म होता है। 4। विषम राशि के लग्न को समराशिगत मंगल देखता हो तो वह न पुरुष होता है और न ही कन्या का जन्म। 5। शुक्र, चंद्रमा व लग्न ये तीनों पुरुष राशि नवांश में हों तो किन्नर (नपुंसक) जन्म लेता है। 6। शनि व शुक्र दशम स्थान में होने पर किन्नर (नपुंसक) होता है। 7। शुक्र से षष्ठ या अष्टम स्थान में शनि होने पर किन्नर (नपुंसक) जन्म लेता है। 8। कारज़ंश कुडली में ज़ेतु पर शनि व बुध की दृष्टि होने पर किन्नर (नपुंसक) होता है। 9। शनि व शुक्र पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो अथवा वे ग्रह अष्टम स्थान में हों तथा शुभ दृष्टि से रहित हों तो किन्नर (नपुंसक) जन्म लेता है। जबकि आयुर्वेद के मुताबिक़ वीर्य की अधिकता से पुरुष (पुत्र) होता है। आर्तव की अधिकता से स्त्री (कन्या) होती है। शुक्र शोणित (रक्त और रज) का साम्य (बराबर) होने से नपुंसका का जन्म होता है।

किन्नर

किन्नर किन्नर हिमालय के क्षेत्रों में बसने वाली एक मनुष्य जाति का नाम है। इस जाति के प्रधान केंद्र 'हिमवत' और 'हेमकूट' थे। किन्नर हिमालय में आधुनिक कन्नोर प्रदेश के पहाड़ी कहे जाते हैं, जिनकी भाषा कन्नौरी, गलचा, लाहौली आदि बोलियों के परिवार की है। 'पुराण' तथा 'महाभारत' आदि की कथाओं में किन्नरों का उल्लेख कई स्थानों पर हुआ है। उल्लेख पुराणों और महाभारत की कथाओं एवं आख्यानों में तो किन्नरों की चर्चाएँ प्राप्त होती ही हैं, 'कादंबरी' जैसे कुछ साहित्यिक ग्रंथों में भी उनके स्वरूप, निवास क्षेत्र और क्रियाकलापों के वर्णन मिलते हैं। जैसा कि उनके नाम ‘किं+नर’ से स्पष्ट है, उनकी योनि और आकृति पूर्णत: मनुष्य की नहीं मानी जाती। संभव है किन्नरों से तात्पर्य उक्त प्रदेश में रहने वाले मंगोल रक्त प्रधान, उन पीत वर्ण लोगों से हो, जिनमें स्त्री-पुरुष-भेद भौगोलिक और रक्तगत विशेषताओं के कारण आसानी से न किया जा सकता हो। उत्पति विचार किन्नरों की उत्पति के विषय में निम्नलिखित दो प्रवाद हैं- ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा की छाया अथवा उनके पैर के अँगूठे से किन्नर उत्पन्न हुए। 'अरिष्टा' और 'कश्पय' किन्नरों के आदिजनक थे। महत्त्वपूर्ण तथ्य हिमालय का पवित्र शिखर 'कैलाश' किन्नरों का प्रधान निवास स्थान था, जहाँ वे भगवान शंकर की सेवा किया करते थे। उन्हें देवताओं का गायक और भक्त समझा जाता है, और यह विश्वास है कि यक्षों और गंधर्वों की तरह वे नृत्य और गान में प्रवीण होते थे। विराट पुरुष इंद्र और हरि उनके पूज्य थे। पुराणों का कथन है कि कृष्ण का दर्शन करने वे द्वारका तक गए थे। सप्तर्षियों से उनके धर्म जानने की कथाएँ प्राप्त होती हैं। उनके सैकड़ों गण थे और चित्ररथ उनका प्रधान अधिपति था। 'शतपथ ब्राह्मण' में अश्वमुखी मानव शरीर वाले किन्नर का उल्लेख है। बौद्ध साहित्य में किन्नर की कल्पना मानवमुखी पक्षी के रूप में की गई है। मानसार में किन्नर के गरुड़ मुखी, मानव शरीरी और पशुपदी रूप का वर्णन है। इस अभिप्राय का चित्रण भरहुत के अनेक उच्चित्रणों में हुआ है।
किन्नरों को पहचान के साथ मिला कानूनी दर्जा शुभ अवसरों पर बधाई के मंगल गान गाने वाले मंगलामुखी किन्नरों को सुप्रीमकोर्ट ने पहचान के साथ कानूनी दर्जा देने का आदेश दिया है। सुप्रीमकोर्ट ने न सिर्फ किन्नरों को लिंग की तीसरी श्रेणी में शामिल करने का आदेश दिया है, बल्कि उन्हें शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में आरक्षण देने का भी आदेश दिया है। कोर्ट ने किन्नरों को बराबरी का हक देते हुए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे किन्नरों की सामाजिक और लिंगानुगत समस्याओं का निवारण करें। इतना ही नहीं उन्हें चिकित्सा सुविधा व अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराएं। न्यायमूर्ति केएस। राधाकृष्णन व न्यायमूर्ति ऐके सीकरी की पीठ ने किन्नरों को पहचान के साथ कानूनी दर्जा मांगने वाली नेशनल लीगल सर्विस अथारिटी (नालसा), किन्नरों के कल्याण के लिए काम करने वाली संस्था पूज्य माता नसीब कौर जी वूमेन वेलफेयर सोसाइटी तथा किन्नर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी की याचिकाएं स्वीकार करते हुए सुनाया है। कोर्ट ने किन्नरों को बराबरी का कानूनी हक देते हुए केंद्र व राज्य सरकारों को नौ दिशा निर्देश जारी किए हैं। पीठ ने कहा कि संविधान में सभी को बराबरी का दर्जा दिया गया है और लिंग के आधार पर भेदभाव की मनाही की गई है। लिंग के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव बराबरी के मौलिक अधिकार का हनन है। संविधान में बराबरी का हक देने वाले अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 का लिंग से कोई संबंध नहीं हैं। इसलिए ये सिर्फ स्त्री, पुरुष तक सीमित नहीं है। इनमें किन्नर भी शामिल हैं। कोर्ट ने कहा कि किसी का लिंग उसकी आंतरिक भावना से तय होता है कि वह पुरुष महसूस करता है या स्त्री या फिर तीसरे लिंग में आता है। किन्नर को न तो स्त्री माना जा सकता है और न ही पुरुष। वे तीसरे लिंग में आते हैं। किन्नर एक विशेष सामाजिक धार्मिक और सांस्कृतिक समूह है इसलिए इन्हें स्त्री, पुरुष से अलग तीसरा लिंग माना जाना चाहिए। कोर्ट ने देश विदेश में किन्नरों के कानूनी दर्जे पर भी चर्चा की है। कोर्ट ने कहा है कि पंजाब में सभी किन्नरों को पुरुष माना जाता है जो कि कानूनन ठीक नहीं है। केरल, त्रिपुरा और बिहार में किन्नरों को तीसरे लिंग में शामिल किया गया है। कुछ राज्यों में उन्हे तीसरी श्रेणी माना है। तमिलनाडु ने किन्नरों के कल्याण के लिए काफी कुछ किया है। कोर्ट ने कहा कि हमारे पड़ोसी राज्य नेपाल और पाकिस्तान ने भी उन्हें पहचान और कानूनी हक दिए हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में स्व पहचान का अधिकार शामिल है। कोर्ट ने किन्नरों को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा बताते हुए केंद्र व राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि शैक्षणिक संस्थानों व नौकरियों में पिछड़ों को दिया जाने वाला आरक्षण किन्नरों को भी दें। कोर्ट ने कहा है कि किन्नरों की दशा पर विचार कर रही सरकार की कमेटी तीन महीने में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दे। सरकार उस रिपोर्ट पर विचार कर इस फैसले को ध्यान में रखते हुए छह महीने के भीतर लागू करे। कोर्ट ने सरकार को दिया आदेश 1- किन्नरों को तीसरे लिंग के तौर पर शामिल कर संविधान और कानून में मिले सभी अधिकार और संरक्षण दिये जाएं 2- किन्नरों को अपने लिंग की पहचान तय करने का हक है। केंद्र व सभी राज्य सरकारें उन्हें कानूनी पहचान दें। 3- किन्नरों को सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ा मानते हुए शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और नौकरियों में आरक्षण दिया जाए 4- सरकार किन्नरों की चिकित्सा समस्याओं के लिए अलग से एचआइवी सीरो सर्विलांस केंद्र स्थापित करें। 5- सरकार किन्नरों की सामाजिक समस्याओं जैसे भय, अपमान, शर्म व सामाजिक कलंक आदि के निवारण के गंभीर प्रयास करे 6- किन्नरों को अस्पतालों में चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराए और अलग से पब्लिक टायलेट व अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराए 7- सरकारें किन्नरों की बेहतरी के लिए सामाजिक कल्याण योजनाएं बनाएं 8- सरकार किन्नरों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के प्रयास करें ताकि किन्नर अपने को अछूत या अलग थलग न महसूस करें 9- सरकार किन्नरों को उनकी पुरानी सांस्कृतिक और सामाजिक प्रतिष्ठा की पहचान दिलाने के लिए कदम उठाएं

दुनिया में हिजड़ो के हालात

विश्व में किन्नरों की स्थिति विश्व में किन्नर समुदाय एक ‘ट्रांसजेंडर’ के रूप में जाने जाते हैं, जिनका इतिहास अधिक प्राचीन नहीं है। इन्हें एलजीबीटी समुदाय का एक वर्ग भी माना जाता है। विश्व में इनकी प्राचीनतम उपस्थिति दक्षिण अफ्रीका और वर्तमान में अधिकतर अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप आदि देशों में मिलती है। इस वर्ग की प्रास्थिति और अधिकारों के लिए वर्ष 2006 में इंडोनेशिया के योज्ञकर्ता में एक विश्व सम्मेलन (6 से 9 नवंबर) आयोजित किया गया जिसमें इनकी लैंगिक उत्पत्ति एवं लिंगीय पहचान को मान्यता प्रदान करते हुए कुछ सिद्धांतों को अंगीकृत किया गया जिन्हें ‘योज्ञकर्ता सिद्धांत’ कहते हैं। योज्ञकर्ता सिद्धांत के बाद विश्व के अनेक देशों ने इस वर्ग के लिए कानून बनाए हैं, जिनमें ब्रिटेन का समानता अधिनियम, 2010, ऑस्ट्रेलिया का लिंग विभेद अधिनियम, 1984 एवं संशोधन अधिनियम, 2013, यूरोपियन यूनियन कानून, 2006 (5 जुलाई, 2006 से 27 देशों में लागू), हेट क्राइम प्रिवेंशन एक्ट, 2009 (अमेरिका) इत्यादि मुख्य हैं। नेपाल के उच्चतम न्यायालय ने सुनील बाबू पंत (2007) के मामले में इस समुदाय को ‘तृतीय लिंग’ की पहचान प्रदान की है।

भारत में किन्नरों का इतिहास

भारत में किन्नरों का इतिहास देश के वैदिक और पौराणिक साहित्यों में इस वर्ग को ‘तृतीय प्रकृति’ का अथवा ‘नपुंसक वर्ग’ के रूप में संबोधित किया गया है अर्थात इनकी उपस्थिति वैदिक काल से मानी जा सकती है। रामायण काल में इस वर्ग की प्रत्यक्ष उपस्थिति का प्रमाण मिलता है, जिसके बारे में दो किंवदंतियां प्रचलित हैं-पहली यह कि भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान सभी ‘पुरुषों’ और ‘स्त्रियों’ को मार्ग से वापस कर दिया था, किंतु चूंकि यह वर्ग न तो पुरुष था और न ही ‘स्त्री’ अतः ये पूरे वनवास काल तक श्रीराम के साथ उनकी सहायता करते रहे। दूसरी यह कि यह वर्ग 14 वर्षों तक उसी स्थान पर भगवान श्रीराम की प्रतीक्षा करता रहा और श्रीराम के वापस आने पर उन्होंने जब इसका कारण पूछा तो इस वर्ग ने उत्तर दिया ‘‘प्रभु आपने केवल ‘पुरुष’ और ‘स्त्री’ को वापस जाने के लिए कहा था, किंतु हम न तो पुरुष हैं और न ही स्त्री’’। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम ने इनकी श्रद्धा एवं निष्ठा से प्रसन्न होकर बच्चों के जन्म एवं शादी-विवाह आदि शुभ अवसरों पर लोगों को आशीर्वाद देने की शक्ति प्रदान की। ऐसा माना जाता है कि तभी से बधाई देने की प्रथा आरंभ हुई जिसमें हिजड़े शुभ अवसरों पर नाचते-गाते हैं एवं अपना आशीष देते हैं। महाभारत काल में भी पांडव राजकुमार अर्जुन एवं नाग राजकुमारी उलुपी के पुत्र ‘अरावन’() का प्रसंग आता है। कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों की विजय सुनिश्चित करने के लिए अरावन ने काली मां को अपना बलिदान देने का निश्चय किया था। काली मां को बलिदान देने से पूर्व अरावन ने भगवान कृष्ण से तीन वरदान मांगे थे। तीसरे वरदान में अरावन ने बलिदान के पूर्व अपने विवाह की इच्छा जतायी थी जिससे उसे दाह-संस्कार एवं अंतिम क्रिया-कर्म का अधिकार प्राप्त हो सके क्योंकि उस समय अविवाहितों को दफनाने की प्रथा थी। चूंकि कोई भी महिला ऐसे व्यक्ति से विवाह के लिए तैयार नहीं थी जो शीघ्र ही काल का ग्रास बनने वाला हो, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं ही मोहिनी नामक एक सुंदर महिला का रूप धर अरावन से विवाह किया। तमिलनाडु के हिजड़ा समुदाय के लोग अरावन को अपना पूर्वज मानते हैं, इसी कारण उन्हें अरावनी भी कहा जाता है। जैन साहित्यों में भी ट्रांसजेंडर समुदाय का विस्तृत वर्णन है जिनमें ‘मनोवैज्ञानिक सेक्स’(Psychological Sex) की अवधारणा का उल्लेख मिलता है। मुगल शासन में हिजड़ों को राजदरबार में भी स्थान मिला था। संभवतः द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की कविता इसी या अन्य किसी घटना को प्रमाणित करती है। ब्रिटिश भारत में 18वीं शताब्दी में हिजड़ों ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी। अंततः ब्रिटिश सरकार को इन पर नियंत्रण के लिए अपराधी जनजातियां अधिनियम, 1871 पारित करके इस पूरे समुदाय को ही एक अपराधी और एडिक्टेड (Addicted) घोषित करना पड़ा। आजादी के बाद अगस्त, 1949 में इस कानून को निरस्त कर दिया गया। स्वतंत्र भारत में यह वर्ग अपने परंपरागत स्थान, महत्त्व और कार्य को कायम रखते हुए अस्तित्व में बना रहा, किंतु तब से लेकर आज तक इनकी प्रास्थिति एक नपुंसक (हिजड़ा) के रूप में होते हुए जन्म, विवाह आदि पर नाच-गाकर जीविका चलाने की रही है। न्यायालय के समक्ष लाए गए तथ्यों के आधार पर स्वयं खंडपीठ को भी निष्कर्षित करना पड़ा कि इस वर्ग को न तो शैक्षिक अधिकार प्राप्त हैं और न ही नियोजन का। सरकारी योजनाओं से वंचित किया जाना तथा इनके पेशे, कार्य एवं पहनावे को लेकर इनका लोगों व पुलिस द्वारा उत्पीड़न किया जाना इत्यादि इनकी दिनचर्या में शामिल होता जा रहा है। पंजाब में सभी किन्नरों को पुरुष माना जाता है, जिसे उच्चतम न्यायालय ने अवैधानिक घोषित कर दिया है। देश के राज्यों केरल, त्रिपुरा और बिहार में किन्नरों को ‘तृतीय-लिंग’ का दर्जा प्रदान किया गया है।

कैसे हो अंतर्राष्ट्रीय कानून और संविधान का प्रवर्तन

उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि जब किन्नरों के अधिकारों के लिए देश में कोई विधि अर्थात विधायन नहीं है और इसके कारण टीजी समुदाय को अनेक विभेदकारी परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है, तब यह न्यायालय उनके प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता से संबंधित अधिकारों की सुरक्षा पर मूकदर्शक नहीं बना रहेगा और अपने संविधानिक दायित्व का निर्वहन करते हुए अपने निर्देशों /आदेशों के माध्यम से उसे प्रवर्तनीय बनाएगा। फिलहाल संसद चाहे तो संविधान के अनुच्छेद 51/253 के अंतर्गत अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और कंवेंशनों के अनुरूप कानून बना सकती है।

किन्नर और अंतर्राष्ट्रीय कानून

उच्चतम न्यायालय ने किन्नरों को देश के संविधान के अंतर्गत एक ‘नागरिक’ और ‘व्यक्ति’ के अंतर्गत सम्मिलित करने के पीछे उन अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को भी विचार में लिया जो ‘मानव-प्राणी’ को मूल मानव अधिकार प्रदान करने के लिए राज्यों को उत्तरदायित्व सौंपते हैं। यद्यपि ये कानून किसी राज्य पर बाध्यकारी नहीं होते हैं किंतु यदि कोई देश ऐसे कानूनों पर एक सदस्य राज्य के रूप में हस्ताक्षर कर देता है, तब उनके मानकों को न्यायालय के माध्यम से लागू करवाया जा सकता है। इस आशय का निर्णय और उसके माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रावधानों को देश के नागरिकों के पक्ष में लागू किए जाने का प्रश्न अनेक बार उच्चतम न्यायालय के समक्ष पहले भी आ चुका है। ऐसा ही एक मामला ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया लि। बनाम वीरेंद्र बहादुर पांडेय का है, जिसमें न्यायालय ने इस विषय पर विधिक स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि देश का न्यायालय अंतर्राष्ट्रीय कंवेंशनों को देश की वचनबद्धता के सिद्धांतों के अनुसार लागू कर सकता है जब तक कि ऐसा देश की विधि के स्पष्ट नियमों द्वारा वर्जित न हो और इस निर्णय का सहारा लेते हुए अन्य अनेक मामलों के साथ-साथ एप्रैल एक्सपोर्ट प्रो। काउंसिल बनाम ए।के। चोपड़ा (1999) 1 SCC 759 के मामले में भी अंतर्राष्ट्रीय कंवेंशन का प्रवर्तन देश में किया गया। फिलहाल किन्नरों के पक्ष में जिन अंतर्राष्ट्रीय कंवेंशनों एवं कानूनों का सहारा लिया गया है उनमें मानव अधिकारों पर सार्वभौमिक घोषणा, 1948 के अनुच्छेद 1, 3, 5, 6, 7 और 12 के अंतर्गत प्रदत्त मूल मानव अधिकार, मानव अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा, 1966, योज्ञकर्ता सिद्धांत, 2006 तथा यूरोपीय कंवेंशन, 2006 और ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका में पारित किए गए हाल के वर्षों के कानून मुख्य हैं।

किन्नर और क़ानून

देश के किन्नर समुदायों के लोगों ने एक समिति के माध्यम से अपने विधिक एवं संवैधानिक अधिकारों की मांग के साथ उत्पीड़न से संरक्षण के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण से सहायता की मांग की। अंततः प्राधिकरण की याचिका को ही मुख्य याचिका मानकर यह निर्णय दिया गया। उच्चतम न्यायालय ने मामले के तथ्यों और सबूतों का अध्ययन करने के बाद अनुभव किया कि वास्तव में यह वर्ग देश में उपेक्षित है और इसे तत्काल विधिक और संविधानिक संरक्षण प्रदान किया जाना आवश्यक है। चूंकि इनके पक्ष में किसी भी कानून का अभाव था, अतः न्यायालय ने इन्हें एक ‘व्यक्ति’ मानते हुए किसी ‘व्यक्ति’ को प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय मूल मानवाधिकार तथा देश के संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों का स्वयं इनके पक्ष में निर्वचन करते हुए यह निर्णय दिया है। किन्नरों के पक्ष में न्यायालय का निर्णय उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 19(1) (क) और 21 के अंतर्गत देश के व्यक्तियों/नागरिकों को प्रदत्त सभी मूल अधिकारों को किन्नरों के भी पक्ष में विस्तारित करते हुए निम्नलिखित निर्णय दिया है- (i) विधि के समक्ष समता का अधिकार (अनुच्छेद 14) संविधान के अनुच्छेद 14 में प्रावधान किया गया है कि राज्य किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। यह अनुच्छेद ‘व्यक्ति’ को केवल ‘पुरुष’ और ‘स्त्री’ तक ही सीमित नहीं करता है। ‘हिजड़ा’ या ‘ट्रांसजेंडर’, जो न तो पुरुष हैं और न ही स्त्री, भी शब्द ‘व्यक्ति’ के अंतर्गत आते हैं। इसलिए राज्य के उन सभी क्षेत्र के कार्यों, नियोजन, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा तथा समान सिविल और नागरिक अधिकारों, जिनका उपभोग देश के अन्य नागरिक कर रहे हैं, ये वर्ग भी विधियों का कानूनी संरक्षण प्राप्त करने का हकदार है। अतः उनके साथ लिंगीय पहचान या लिंगीय उत्पत्ति के आधार पर विभेद करना विधि के समक्ष समानता और विधि के समान संरक्षण का उल्लंघन करता है। (ii) किन्नरों के साथ लिंग-विभेद (अनुच्छेद 15 एवं 16) संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 संयुक्त रूप से लिंगीय पक्षपात या लिंगीय विभेद को प्रतिबंधित करते हैं। इनमें प्रयोग किया गया शब्द ‘लिंग’ केवल पुरुष या स्त्री के जैविक लिंग तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके अंतर्गत वे लोग भी शामिल हैं जो स्वयं को न तो पुरुष मानते हैं और न स्त्री। अतः ये वर्ग इन अनुच्छेदों के संरक्षण के साथ-साथ अनुच्छेद 15(4) एवं 16(4) के द्वारा प्रदत्त आरक्षण का भी लाभ प्राप्त करने का अधिकारी है, जिसे देने के लिए राज्य बाध्य है। वास्तव में ये अनुच्छेद ‘सामाजिक समेकता’(Social Equality) की अपेक्षा करते हैं और इनका अनुभव टीजी समुदाय केवल तब ही कर सकता है जब उसे भी सुविधाएं और अवसर प्रदान किए जाएं। (iii) किन्नरों की स्व-पहचानीकृत लिंग एवं आत्म- अभिव्यक्ति [अनुच्छेद 19(1)क] संविधान के अनुच्छेद 19(1) (क) का कथन है कि सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होगी और इसके अंतर्गत किसी नागरिक के अपने ‘स्व-पहचानीकृत लिंग’(Self-identified Gender) को अभिव्यक्त करने का अधिकार भी सम्मिलित है, जिसे पहनावा (Dress), शब्द, कार्य या व्यवहार अथवा अन्य रूप में दर्शित किया जा सकता है और संविधान के अनुच्छेद 19(2) में कथित प्रतिबंधों के सिवाय किसी ऐसे व्यक्ति की व्यक्तिगत प्रस्तुति या वेशभूषा पर अन्य कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। अतः ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों की एकांतता का महत्त्व, स्व-पहचान (Self-identity), स्वायत्तता और व्यक्तिगत अखंडता अनुच्छेद 19(1) (क) के अंतर्गत प्रत्याभूत किए गए मूल अधिकार हैं और राज्य इन अधिकारों की रक्षा करने तथा उन्हें मान्यता प्रदान करने के लिए बाध्य है। (iv) लिंगीय पहचान और गरिमा का अधिकार (अनुच्छेद 21) संविधान का अनुच्छेद 21 यह प्रावधान करता है कि ‘‘किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं’’। यह अनुच्छेद मानव जीवन की गरिमा, किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वायत्तता एवं किसी व्यक्ति की निजता के अधिकार को संरक्षण प्रदान करता है। किसी व्यक्ति की लिंगीय पहचान को मान्यता दिया जाना गरिमा के मूल अधिकार के हृदय में निवास करता है। इसलिए लिंगीय पहचान हमारे संविधान के अंतर्गत गरिमा के अधिकार और स्वतंत्रता का एक भाग है। (v) ‘तृतीय लिंग’ की संविधानिक अवधारणा और कानूनी मान्यता स्व-पहचानीकृत लिंग या तो ‘पुरुष’ या ‘महिला’ या एक ‘तृतीय लिंग’(Third Gender) हो सकता है। ‘हिजड़ा’ तृतीय लिंग के रूप में ही जाने जाते हैं, न कि पुरुष अथवा स्त्री के रूप में। इसलिए इनकी अपनी लिंगीय अक्षमता को सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक समूह के कारण एक तृतीय लिंग के रूप में विचारित किया जाना चाहिए। संक्षेपतः संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 19 और 21 हिजड़ा या टीजी समूह के सदस्यों को अपनी सीमाओं से बाहर नहीं करते हैं। वास्तव में इन अनुच्छेदों में प्रयुक्त शब्द ‘व्यक्ति’, ‘नागरिक’ और ‘लिंग’ संपूर्ण ‘मानव-प्राणी’ को संकेतिक करता है जो निस्संदेह हिजड़ा (किन्नर) और टीजी समूह तक विस्तारित है। अतः लिंगीय उत्पत्ति या लिंगीय पहचान के आधार पर कोई भी विभेद करना या किसी भी प्रकार का अंतर करना, अपवर्जन, प्रतिबंध या प्राथमिकता को भी सम्मिलित करता है, जो संविधान के अंतर्गत प्रत्याभूत विधियों के समान संरक्षण या विधि के समक्ष समता को शून्य करने का प्रभाव रखता है। (vi) लिंग परिवर्तन करने वाले के संवैधानिक अधिकार 21वीं शताब्दी को ‘अधिकारों का काल’(Age of Rights) के रूप में जाना जा रहा है। इस न्यायालय ने पिछले दो-तीन दशकों से अनुच्छेद 21 का निर्वचन करने में अनेक अधिकारों की घोषणा की है, जिनकी समीक्षा करने के बाद निष्कर्षित किया जा सकता है कि यदि कोई व्यक्ति अपने लिंग या अपनी लिंगीय विशेषता और मानसिक भाव का आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत ‘लिंग पुनर्स्थापना शल्य क्रिया’(Sex Re-assignment Surgery-SRS) के द्वारा परिवर्तन करा लेता है, तब ऐसी शल्य क्रिया के बाद बनाए गए पुनर्लिंग (Assigned Sex) को लिंगीय पहचान की मान्यता देने में कोई बाधा या रुकावट नहीं है। अतः ऐसा व्यक्ति भी पुरुष या स्त्री के रूप में मान्यता प्राप्त करने का संविधानिक अधिकार रखता है। वस्तुतः टीजी समूह भी देश के नागरिक हैं और उन्हें तृतीय लिंग की पहचान दी जानी चाहिए जिससे वे भी गरिमा और सम्मान के साथ अर्थपूर्ण ढंग से जीवन-यापन कर सकें और देश के अन्य नागरिकों की भांति मतदान के अधिकार, संपत्ति अर्जन के अधिकार, विवाह के अधिकार, पासपोर्ट, राशन कार्ड, वाहन-चालन अनुज्ञप्ति इत्यादि के माध्यम से औपचारिक पहचान प्राप्त करने के अधिकार, शिक्षा, नियोजन एवं स्वास्थ्य इत्यादि के अधिकार का दावा कर सकें। वास्तव में इन अधिकारों से इन वर्गों को वंचित रखे जाने का कोई कारण नहीं है। (इस शीर्षक के अंतर्गत निर्णय के अंश न्यायमूर्ति ए।के। सीकरी के हैं, जिन्होंने अन्य मामलों में इसके पूर्व न्यायमूर्ति के।एस। राधाकृष्णन के संपूर्ण तर्कों का समर्थन किया है)।

कौन हैं ‘किन्नर’?

कौन हैं ‘किन्नर’? हिजड़ा उर्दू एवं हिंदी भाषा का शब्द है जिसका प्रयोग तृतीय प्रकृति के लोगों के संदर्भ में किया जाता है। इस वर्ग के व्यक्तियों को विभिन्न नामों से पुकारा जाता है। ‘किन्नर’ इसी वर्ग के लिए एक संबोधन है। तेलुगु भाषा में हिजड़े के लिए ‘नपुंसकुडु’, कोज्जा या मादा जैसे शब्दों का प्रयोग होता है। तमिल भाषा में इसके समतुल्य शब्द थिरु नंगई, अरावनी हैं। जहां पंजाबी में इनके लिए खुसरा शब्द का प्रयोग होता है वहीं गुजराती में इन्हें पवैय्या कहा जाता है। कन्नड़ भाषा में इनके लिए जोगप्पा शब्द प्रचलन में है। भारत में कई जगह इस समुदाय के लोगों के लिए कोठी शब्द का प्रयोग भी होता है। अंग्रेजी में इन्हें ‘युनक’ (Eunuch) कहा जाता है। इनकी देश में अनुमानित संख्या सवा दो लाख से अधिक है। संयुक्त रूप से इन्हें ‘किन्नर समुदाय’ अथवा आधुनिक पाश्चात्य भाषा में ‘ट्रांसजेंडर्स’ या ‘टी।जी। समुदाय’माना जाता है, जिनके अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए देश में कोई कानून न होने के कारण उन्हें अनेक परेशानियों एवं कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। व्यवहारिक पक्ष यह भी है कि इस वर्ग को वर्तमान व्यवस्था में न तो ‘पुरुष’ माना जाता है और न ही ‘स्त्री’। प्राचीनतम रूप में इन्हें ‘नपुंसक’ की भी संज्ञा दी गई जिसका प्रचलित रूप ही ‘हिजड़ा’ है।

किन्नरों को ‘तृतीय लिंग’ पहचान

किन्नरों को ‘तृतीय लिंग’ पहचान देश के वैदिक और पौराणिक साहित्य में ‘तृतीय प्रकृति’ के रूप में अपनी पहचान रखने वाले और ‘रामायण’ एवं ‘महाभारत’ काल से ही अपनी उपस्थिति दर्ज कराने वाले ‘किन्नर-समुदाय’ की सुधि अंततः उच्चतम न्यायालय को ही लेनी पड़ी। न्यायालय ने अपने एक ऐतिहासिक निर्णय के द्वारा इस समुदाय को न केवल ‘तृतीय लिंग’ की पहचान देने बल्कि उन्हें सभी ‘विधिक’ और ‘संविधानिक-अधिकार’ भी प्रदान करने का निर्देश केंद्र सरकार एवं देश की राज्य सरकारों को दिया है। वास्तव में यह कार्य तो विधायिका का था, किंतु आजादी के छह दशक बाद भी ऐसा नहीं किया जा सका और इस रिक्तता की पूर्ति अंततः न्यायिक निर्णय के द्वारा उच्चतम न्यायालय को करनी पड़ी। ‘राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण’ (नाल्सा) बनाम भारत संघ और अन्य (2014)के मामले में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति के।एस। राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए।के। सीकरी की खंडपीठ ने यह निर्णय 15 अप्रैल, 2014 को दिया। यह निर्णय इसलिए भी याद किया जाएगा कि इस निर्णय और निर्देश का विस्तार उन व्यक्तियों पर भी किया गया है जो आधुनिक शल्य-क्रिया के द्वारा अपना लिंग परिवर्तन करा लेते हैं।

ट्रांसजेंडर मधु किन्नर ने छत्तीसगढ़ के रायगढ़ की बनी महापौर

- रायगढ़ नगर निगम में महापौर पद की निर्दलीय उम्मीदवार और ट्रांसजेंडर मधु किन्नर ने 4 जनवरी 2015 को महापौर पद का चुनाव जीता। मधु किन्नर ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा के महावीर चौहान को 4537 वोटों से हराया। राज्य में ऐसा पहली बार हुआ है जब कोई किन्नर राज्य में महापौर बनी हैं। मधु किन्नर का वास्तविक नाम नरेश चौहान है। मधु ने रेलगाड़ियों में गायक और नर्तकी के रूप में काम करके चुनावी अभियान का फंड एकत्रित किया। सितंबर 2014 में कोयम्बटूर आधारित तमिल भाषा के लोटस टीवी में पद्मिनी प्रकाश को भारत की पहली ट्रांसजेंडर न्यूज एंकर के रुप में नियुक्त किया गया। गौरतलब है कि देश में पहली बार मध्य प्रदेश ने एक किन्नर को विधायक चुना था। शबनम मौसी वर्ष 2000 में सुहागपुर से विधायक चुनी गई थीं। इनकी कहानी पर आशुतोष राणा अभिनीत शबनम मौसी के नाम से फिल्म भी बन चुकी है।

बेटी को जन्म न देने पर महिला को पहुंचाया वैश्यालय

बेटी को जन्म न देने पर महिला को पहुंचाया वैश्यालय कोलकाता पुलिस इन दिनों एक ऐसे मामले की जांच कर रही है जिसमे एक महिला को उसके ससुराल वालों ने सिर्फ इसलिए वैश्यालय पहुंचा दिया क्योंकि वो बेटी को जन्म नहीं दे पा रही थी। पीड़िता का कहना है कि उसके ससुराल वालों ने उसे सिर्फ इसलिए वैश्यालय में छोड़ दिया क्योंकि उसने लगातार तीन बेटों को ही जन्म दिया था। हालांकि देह व्यापार के धंधे में उतारे जाने से पहले ही एक गैर सरकारी संगठन ने इस महिला को बचा लिया। 30 वर्षीय इस महिला को शहर के एक वैश्यालय से मुक्त करा लिया गया है और पुलिस इस मामले की जांच कर रही है। महिला ने बताया कि उसके ससुराल वाले उससे परेशान थे। पीड़िता ने बताया कि उसने लगातार तीन बेटों को जन्म दिया जबकि उनके ससुराल वाले चाहते थे कि वो बेटी को जन्म दे ताकि उसके बड़ा होने पर उसे सेक्स वर्कर बनाया जा सके। पीड़िता ने बताया कि उसके ससुराल का रिवाज है कि वहां पर बेटियों को सेक्स वर्कर के रुप में काम करना पड़ता है। कोलकाता के सोनगाची जिले में एशिया का सबसे बड़ा वैश्यालय है। यहां पर करीब 10,000 वैश्याएं हर रोज अपने जिस्म का सौदा करती हैं। अपने जिस्म का सौदा करने वाली ज्यादातर वैश्याएं उत्तर और मध्य भारत की हैं। पुलिस का कहना है कि महिला के आरोपों के आधार पर उसके ससुराल में घर पर छापा मारा था लेकिन उन्हें वहां पर कोई नहीं मिला। पीड़िता ने बताया कि उसके ससुराल वाले उससे हर रोज कहते थे कि उसे एक बेटी को जन्म देना है ताकि उसे सेक्स वर्कर बनाया जा सके। पीड़िता ने बताया कि जब उसने लगातार तीन बेटों को जन्म दिया तो उससे कहा जाने लगा कि ये लड़के उनके किसी काम के नहीं हैं और इसलिए कमाई के लिए उसे ही सेक्स वर्कर के तौर पर काम करना शुरू कर देना चाहिए। पीड़िता ने बताया कि तीसरे बेटों को जन्म देने के बाद उसके ससुराल वालों का जुल्म और बढ़ गया और उन्होंने उसे शुक्रवार की रात को सोनगांची में फेंक दिया। सोनगाची के सेक्स वर्करों के एक ग्रुप ने बताया कि उत्तर प्रदेश के उत्तरी भाग में आने वाले कुछ क्षेत्रों जहां से पीड़िता के ससुरालजन जहां से ताल्लुक रखते हैं, वहां पर यह रिवाज है कि वहां महिलाओं को सेक्स वर्कर के तौर पर काम करना पड़ता है। महिला ने यह भी बताया कि जब उसकी शादी हो रही थी उस वक्त उसके ससुराल वालों ने यह बताया था कि दूल्हे की कोलकाता में खुद की मोबाइल रिपेयरिंग की दुकान है। उसने यह भी बताया कि उसका पति मुंबई में रहता है लेकिन उसे यह नहीं पता कि वो वहां क्या काम करता है।

बॉडी बिल्डर बौने और 6 फुट के किन्नर की 'लव स्टोरी'

लंदन। कहते हैं प्यार अंधा होता है। प्यार में व्यक्ति न रूप देखता है ना रंग। एक ऐसी प्रेम कहानी लंदन में सामने आई है। डेली स्टार में छपी खबर के मुताबिक फ्लोरिडा में रहने वाले दुनिया के सबसे स्ट्रॉन्ग बौने आदमी एंटन क्रॉफ्ट को 43 साल की किन्नर चाइना बेल से प्यार हो गया है। 52 वर्षीय चार फुट चार इंच के बौने एंटन क्रॉफ्ट अपने से चार गुना वजन से उठा सकते हैं। वे दुनिया में एक‍मात्र व्यक्ति हैं जो यह कारनामा कर सकते हैं। चाइना का कद ‌किसी आम बास्केट बॉल प्लेयर से भी ऊंचा है। वे 6 फुट 3 इंच की ऐसी किन्नर हैं जो जन्म से तो मर्द थी, लेकिन बाद में किन्नर बन गईं। क्रॉफ्ट 6 माह पहले चाइना बेल के प्यार में डूबे और उन्होंने डेटिंग शुरू की। क्रॉफ्ट के बारे में चाइना का कहना है कि वे बहुत सेक्सी हैं। क्रॉफ्ट जब वेटलिफ्‍टिंग करते हैं तो वे बहुत सेक्सी लगते हैं। वे दुनिया में सबसे अलग व्यक्ति हैं। वहीं क्रॉफ्ट का चाइना के बारे में कहना है कि उन्हें एक किन्नर के साथ डेटिंग में बहुत मजा आता है। क्रॉफ्ट अपने को बहुत पृथ्वी पर सबसे खुशनसीब व्यक्ति मानते हैं। इसके लिए वे चाइना बेल को धन्यवाद देते हैं।

देश में पहली बार किन्नर को बनाया कॉलेज का प्रिंसिपल

देश में पहली बार किन्नर को बनाया कॉलेज का प्रिंसिपल कोलकाता: पश्चिम बंगाल सरकार ने एक किन्नर शिक्षाविद् को राज्य में एक कॉलेज का प्रिंसिपल नियुक्त किया है। सरकार की इस पहल को किन्नरों को सशक्त बनाने की दिशा में उठाया गया बड़ा कदम माना जा रहा है। यह देश में अपनी तरह का पहला मामला है। मानबी बंदोपाध्याय नाम की किन्नर शिक्षाविद् को कृष्णानगर महिला कॉलेज की प्रिंसिपल नियुक्त किया गया है। वह नौ जून को कार्यभार संभालेंगी। वह राज्य के विवेकानंद सतोवार्षिकी कॉलेज में सह-प्राध्यापक हैं। कल्याणी विश्वविद्यालय के कुलपति रतन लाल हंगलू ने बुधवार को बताया, ‘वह एक सक्षम प्रशासक और एक अच्छी इंसान हैं। इससे पूरे भारत का यह समुदाय सशक्त होगा। मुझे खुशी है कि बंगाल सरकार ने यह कदम उठाया।’ जिस कॉलेज में मानबी को प्रिंसिपल नियुक्त किया गया है, वह कल्याणी विश्वविद्यालय से ही संबद्ध है। इस वर्ष प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय और जादवपुर विश्वविद्यालय ने तीसर्रे लिंग को शामिल किए जाने के लिए अपने प्रवेश आवेदन-पत्रों में अलग मानडंद बनाए हैं। पिछले माह ही राष्ट्रीय स्तर पर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकार विधेयक, 2014 को राज्यसभा से पारित किया गया। 45 साल में पहली बार राज्यसभा में सर्वसम्मति से एक निजी विधेयक पारित किया गया है। इस विधेयक में किन्नर समुदाय के लिए एक राष्ट्रीय आयोग और राज्य स्तरीय आयोग बनाने की परिकल्पना की गई है।

व्यथा किन्नर की

मालिक, तूने मुझको जहां में, आधा अधूरा पैदा किया है। नर ही बना न नारी मैं तो, कैसा जीवन मुझको दिया हैं। माँ ने त्यागा पैदा करके, पिता ने फेका व्यर्थ समझ के, गैरों की छाती से मैंने , दूध का पहला घूँट पिया हैं। मालिक, तूने....... सौंप दिया मुझे किन हाथो में, जहां ममता प्यार को तरसी थी। नुपुर ध्वनि, ढोलक की थाप ने, बचपन मेरा छीन लिया है। मालिक, तूने....... यौवन की दहलीज पे आके, अपने सपने मन में दबा के। गैरों की खुशियों को मैंने, जीवन अपना भेंट किया हैं। मालिक, तूने....... तिरस्कार के प्रतिकार में, मैंने बांटी है आशीषे, भाग्य में मेरे दाता तूने, ये कैसा संजोग किया है। मालिक, तूने....... कोई नहीं है भाई हमारा, कोई हमारी बहन नहीं है। मित्र भी मुझको नहीं मिलता है, कौन सा मैंने पाप किया है। मालिक, तूने....... हाड मास का पुतला नहीं मै, मै भी एक इंसान हूँ। मेरे सीने भी दिल है, फिर क्यों सहती अपमान हूँ। मालिक, तूने....... आधा अधूरा भेजना था तो, हाथ पैर ही रख लिए होते। करुणा के वश होकर सब फिर, मन ही मन सब मेरे हाल पे रोते। मालिक, तूने....... आधा अधूरा भेजना था तो रख लिए होते मेरे नैन, तिरस्कार तो कोई न करता, सुख से कटते दिन और रैन। मालिक, तूने....... मैंने मालिक तेरी शान में, जाने क्या गुस्ताखी की है। स्रष्टि तेरी आगे चलाऊँ, नहींमुझको वो शक्ति दी है। मालिक, तूने....... छोटे से छोटे प्राणी भी, आगे अपना वंश चलायें। हम तो बस गैरों के घर में, पुत्र जन्म पर नाचें गाए। मालिक, तूने....... विनती मेरी सुन लो दाता, मैं भी हूँ तुम्हारी रचना। एसी सजा मत किसी को देना, बस मेरा है इतना कहना। मालिक, तूने....... मैंने मालिक तेरे हुक्म से, जहर का एसा घूँट पिया है। क्योंकि तूने जहां में मुझको, आधा अधूरा भेज दिया है। मालिक, तूने....... क्योंकि तूने जहां में मुझको, आधा अधूरा भेज दिया है।
इक एहसास गैर राजनैतिक समाजसेवी संस्था Non Governing Organisation है। अपने नाम के अनुरूप यह संस्था समाज की अंतिम कतार में खड़े वर्ग के बारे में विचार करती है, इस वर्ग के उत्थान के लिए योजनायें बनाती है और उनके क्रियान्वयन का भरसक प्रयास करती है। संस्था के नाम में व्याकरण के लिहाज से खामी नजर आती है, लेकिन इस खामी का भी एक मकसद है। क्योंकि एक को इक लिखा गया है। दरअसल यह जानबूझकर किया गया है। क्योंकि इक से मकसद सम्पूर्ण एक न होकर तनिक मात्र से है, थोडा से है। भाषाई स्तर पर एक शुद्ध तो है, परन्तु उसमे कठोरता दिखती है। जबकि इक में लचीलापन, अपनापन और गैर बनावट प्रतीत होती है। इसमें गुजारिश और मोहब्बत का पैगाम नजर आता है। संस्था का उद्देश्य भी यही है कि प्राणी मात्र के लिए प्राणियों में तनिक भी एहसास जगा देना। संस्था समाज के विभिन्न वर्गों, बुजुर्गों, महिलाओं, अनाथ बच्चों, तथा जानवरों के लिए आश्रम, अनाथालय, पशुशालाओं का निर्माण तो करने के साथ पुस्तकालय, शिक्षा एवं प्रशिक्षण केन्दों का निर्माण तो करना ही चाहती है। लेकिन इस संस्था की मुख्य विशेषता है समाज में तिरस्कृत, अपनों से ठुकराए, दूसरों की गालियों के बदले दुआएं देने वाले पुरुष काया में महिला मन लिए किन्नर समुदाय भी हैं। संस्था ने इस समुदाय के लिए कार्य योजनायें बनाई है, जिनका क्रियान्वयन हम-आप और किन्नर समुदाय मिलकर करेंगे। किन्नर किसी किन्नर की कोख से जन्म नहीं लेता, बल्कि उसको जन्म देने वाला यही पुरुष और महिलाएं ही होती है। लेकिन सामाजिक कुंठाओं के चलते यह अपने माता-पिता, भाई-बहिनों से दूर होकर अनजान किन्नर समाज में शरण लेते है। इन्हें पुरुष और महिला से भिन्न होने के नाते अपने परिवारों का परित्याग करना पड़ता है। माँ-बाप, भाई-बहिन होते हुए भी बिन माँ-बाप, भाई-बहिन और नाते रिश्तेदारों के जिंदगी गुजारनी पड़ती है। इनके लिए रिश्ते नाते बे मायने हो जाते है। समाज इन्हें तिरस्कार और उपहास का साधन मान लेता है। इसके बावजूद यह उस समाज को दुआएं देने का कोई मौका नहीं छोड़ते। इक एहसास संस्था ने इस वर्ग के रोटी, कपडा, मकान, सुरक्षा और सम्मान के लिए कार्य योजनाये बनाई है। जिसमे शिक्षा ( शिक्षा, प्रौढ़ शिक्षा, साक्षरता अभियान, विभिन्न तकनीकी प्रशिक्षण, कौशल विकास कार्यशालाए चलाकर रोजगार परक ज्ञान देना है। संस्था इनके लिए और इनके द्वारा कई योजनाओं को चला रही है। संस्था इक एहसास के अंग्रेंजी भाषा EK-EHSAS के प्रत्येक अक्षर में अपनी योजनाओं को सजोयें हुए है। संस्था अपने अंग्रेजी नाम के प्रथम अक्षर E का पर्याय EMPLOYMENT (रोजगार) और दुसरे अक्षर K का पर्याय KNOWLEDGE (ज्ञान) से हैं। तीसरे अक्षर E का पर्याय EDUCATION (शिक्षा), चौथे H का HEALTH (स्वास्थ्य) पांचवे S का SOCIAL (सामाजिक) छठे A का AWARENESS (जागरूकता) और अंतिम S का SOCIETY (समिति) है। अर्थात EMPLOYMENT KNOWLEDGE - EDUCATIONAL, HEALTH, SOCIAL, AWARENESS SOCIETY (रोजगार परक ज्ञान- शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक जागरूकता समिति) से है। संस्था अपने नाम और नाम के प्रत्येक अक्षर के मायनों के अनुरूप योजनाओं पर कार्य करने के लिए आपको आमंत्रित करती है। अभी तीन योजनाये कार्यशील है। जिनमे प्रथम हाथ मिलन योजना हैं। इस योजना के तहत संस्था आपको सदस्यता के लिए आमंत्रित करती है। संस्था की सदस्यता को चार भागों में बांटा गया है। साधारण सदस्य, सक्रिय सदस्य, सम्मानित सदस्य और आजीवन सदस्य। साथ चलन योजना- इसके तहत संस्था की योजनाओं में आर्थिक भागीदारी और सहयोग से है। आप सहन योजना- इसके तहत कोई भी व्यक्ति, समूह आदि योजनाओं को स्पांसर कर सकता है। इसके अतिरिक्त संस्था समाज से भिक्षाव्रती को समाप्त करने के लिए कार्य करती है। इसमें आपको सिर्फ अपनी रद्दी, कबाड़ जैसे अखबारी कागज़, कापी-किताब, मैगजीन, पुराने कपडे, बर्तन, फर्नीचर,जूते-चप्पल, खिलौने, इलेक्ट्रिक एवं इलेक्ट्रानिक सामान आदि को संस्था के हवाले कर दे। जिसे संस्था के लक्षित वर्ग नए रूप में परिवर्तित कर उपयोगी बनायेंगे। उनकी उपयोगिता अनुसार उस वर्ग को पुरुस्कृत किया जाएगा। जिससे हतोत्साहित वर्ग में उत्साह का संचार होगा वहीं आपके प्रयास से भिखारी कारीगर बन जाएगा। हाथ-साथ योजना- अकेले पद चुके किन्नर में परिवार की कमी दूर करने के उद्देश्य से हाथ-साथ योजना है। इस योजना के तहत किसी अनाथ बच्चे की परवरिस और उसकी शिक्षा की जिम्मेदारी किन्नर या कोई अन्य ले सकता है। जिसकी निगरानी संस्था करेगी। कला का सिला- इसके तहत किन्नर समुदाय सहित समाज के अन्य वर्ग में छिपी प्रतिभा जैसे नृत्य, संगीत, रूपसज्जा आदि को निखार, कौशल विकास कर स्वालंबी बनाना हैं। जल, वायु, पशु, पक्षी संरक्षण योजना- यह योजना काफी व्यापक है। इसके तहत जहां जल संरक्षण के लिए विभिन्न कार्य योजनायें हैं, वहीं वायु यानी कि पर्यावरण के लिए भी पौधारापण योजना है। इसमें उपलब्ध भूमि, या किसी शमसान, कब्रिस्तान पर पौधा लगाना, उनको संरक्षित करना हैं। इसमें आने वाली लागत को स्पांसर शिप (प्रायोजक) पर चलाया जाता है। इस पौधे का नाम प्रायोजक अथवा उसके सुझाए गए नाम पर रखा जाता है। पशु-पक्षी संरक्षण के तहत जिन पशुओं और पक्षियों को लावारिस छोड़ दिया जाता है। उनके आश्रय, उनके चिकत्सालय की व्यवस्था की जाती हैं। संस्था रूपसज्जा, सिलाई-कढ़ाई और बुनाई एवं टाइपिंग कला प्रशिक्षण केंद्र सहित पत्रकारिता कोर्स भी चलाती है। स्वालंबन एवं व्यवसायिक गतिविधियों के तहत कोरियर सेवा भी चलाती है। संस्था आपके सुझाव एवं सहयोग से और भी बहुत योजनाओं का क्रियान्वयन करना चाहती है। आइये मिलकर चले क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।