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Saeed Ahmad, Date of Birth : August 09, 1963 Birth Place : Kanpur Marital Status : Married Cadre : NCC Profession : Journalism (Media consultant, Web & Print)

Thursday, 11 June 2015

किन्नर और क़ानून

देश के किन्नर समुदायों के लोगों ने एक समिति के माध्यम से अपने विधिक एवं संवैधानिक अधिकारों की मांग के साथ उत्पीड़न से संरक्षण के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका प्रस्तुत की और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण से सहायता की मांग की। अंततः प्राधिकरण की याचिका को ही मुख्य याचिका मानकर यह निर्णय दिया गया। उच्चतम न्यायालय ने मामले के तथ्यों और सबूतों का अध्ययन करने के बाद अनुभव किया कि वास्तव में यह वर्ग देश में उपेक्षित है और इसे तत्काल विधिक और संविधानिक संरक्षण प्रदान किया जाना आवश्यक है। चूंकि इनके पक्ष में किसी भी कानून का अभाव था, अतः न्यायालय ने इन्हें एक ‘व्यक्ति’ मानते हुए किसी ‘व्यक्ति’ को प्राप्त अंतर्राष्ट्रीय मूल मानवाधिकार तथा देश के संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों का स्वयं इनके पक्ष में निर्वचन करते हुए यह निर्णय दिया है। किन्नरों के पक्ष में न्यायालय का निर्णय उच्चतम न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 19(1) (क) और 21 के अंतर्गत देश के व्यक्तियों/नागरिकों को प्रदत्त सभी मूल अधिकारों को किन्नरों के भी पक्ष में विस्तारित करते हुए निम्नलिखित निर्णय दिया है- (i) विधि के समक्ष समता का अधिकार (अनुच्छेद 14) संविधान के अनुच्छेद 14 में प्रावधान किया गया है कि राज्य किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा। यह अनुच्छेद ‘व्यक्ति’ को केवल ‘पुरुष’ और ‘स्त्री’ तक ही सीमित नहीं करता है। ‘हिजड़ा’ या ‘ट्रांसजेंडर’, जो न तो पुरुष हैं और न ही स्त्री, भी शब्द ‘व्यक्ति’ के अंतर्गत आते हैं। इसलिए राज्य के उन सभी क्षेत्र के कार्यों, नियोजन, स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा तथा समान सिविल और नागरिक अधिकारों, जिनका उपभोग देश के अन्य नागरिक कर रहे हैं, ये वर्ग भी विधियों का कानूनी संरक्षण प्राप्त करने का हकदार है। अतः उनके साथ लिंगीय पहचान या लिंगीय उत्पत्ति के आधार पर विभेद करना विधि के समक्ष समानता और विधि के समान संरक्षण का उल्लंघन करता है। (ii) किन्नरों के साथ लिंग-विभेद (अनुच्छेद 15 एवं 16) संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 संयुक्त रूप से लिंगीय पक्षपात या लिंगीय विभेद को प्रतिबंधित करते हैं। इनमें प्रयोग किया गया शब्द ‘लिंग’ केवल पुरुष या स्त्री के जैविक लिंग तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके अंतर्गत वे लोग भी शामिल हैं जो स्वयं को न तो पुरुष मानते हैं और न स्त्री। अतः ये वर्ग इन अनुच्छेदों के संरक्षण के साथ-साथ अनुच्छेद 15(4) एवं 16(4) के द्वारा प्रदत्त आरक्षण का भी लाभ प्राप्त करने का अधिकारी है, जिसे देने के लिए राज्य बाध्य है। वास्तव में ये अनुच्छेद ‘सामाजिक समेकता’(Social Equality) की अपेक्षा करते हैं और इनका अनुभव टीजी समुदाय केवल तब ही कर सकता है जब उसे भी सुविधाएं और अवसर प्रदान किए जाएं। (iii) किन्नरों की स्व-पहचानीकृत लिंग एवं आत्म- अभिव्यक्ति [अनुच्छेद 19(1)क] संविधान के अनुच्छेद 19(1) (क) का कथन है कि सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होगी और इसके अंतर्गत किसी नागरिक के अपने ‘स्व-पहचानीकृत लिंग’(Self-identified Gender) को अभिव्यक्त करने का अधिकार भी सम्मिलित है, जिसे पहनावा (Dress), शब्द, कार्य या व्यवहार अथवा अन्य रूप में दर्शित किया जा सकता है और संविधान के अनुच्छेद 19(2) में कथित प्रतिबंधों के सिवाय किसी ऐसे व्यक्ति की व्यक्तिगत प्रस्तुति या वेशभूषा पर अन्य कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है। अतः ट्रांसजेंडर समुदाय के सदस्यों की एकांतता का महत्त्व, स्व-पहचान (Self-identity), स्वायत्तता और व्यक्तिगत अखंडता अनुच्छेद 19(1) (क) के अंतर्गत प्रत्याभूत किए गए मूल अधिकार हैं और राज्य इन अधिकारों की रक्षा करने तथा उन्हें मान्यता प्रदान करने के लिए बाध्य है। (iv) लिंगीय पहचान और गरिमा का अधिकार (अनुच्छेद 21) संविधान का अनुच्छेद 21 यह प्रावधान करता है कि ‘‘किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं’’। यह अनुच्छेद मानव जीवन की गरिमा, किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वायत्तता एवं किसी व्यक्ति की निजता के अधिकार को संरक्षण प्रदान करता है। किसी व्यक्ति की लिंगीय पहचान को मान्यता दिया जाना गरिमा के मूल अधिकार के हृदय में निवास करता है। इसलिए लिंगीय पहचान हमारे संविधान के अंतर्गत गरिमा के अधिकार और स्वतंत्रता का एक भाग है। (v) ‘तृतीय लिंग’ की संविधानिक अवधारणा और कानूनी मान्यता स्व-पहचानीकृत लिंग या तो ‘पुरुष’ या ‘महिला’ या एक ‘तृतीय लिंग’(Third Gender) हो सकता है। ‘हिजड़ा’ तृतीय लिंग के रूप में ही जाने जाते हैं, न कि पुरुष अथवा स्त्री के रूप में। इसलिए इनकी अपनी लिंगीय अक्षमता को सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक समूह के कारण एक तृतीय लिंग के रूप में विचारित किया जाना चाहिए। संक्षेपतः संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 19 और 21 हिजड़ा या टीजी समूह के सदस्यों को अपनी सीमाओं से बाहर नहीं करते हैं। वास्तव में इन अनुच्छेदों में प्रयुक्त शब्द ‘व्यक्ति’, ‘नागरिक’ और ‘लिंग’ संपूर्ण ‘मानव-प्राणी’ को संकेतिक करता है जो निस्संदेह हिजड़ा (किन्नर) और टीजी समूह तक विस्तारित है। अतः लिंगीय उत्पत्ति या लिंगीय पहचान के आधार पर कोई भी विभेद करना या किसी भी प्रकार का अंतर करना, अपवर्जन, प्रतिबंध या प्राथमिकता को भी सम्मिलित करता है, जो संविधान के अंतर्गत प्रत्याभूत विधियों के समान संरक्षण या विधि के समक्ष समता को शून्य करने का प्रभाव रखता है। (vi) लिंग परिवर्तन करने वाले के संवैधानिक अधिकार 21वीं शताब्दी को ‘अधिकारों का काल’(Age of Rights) के रूप में जाना जा रहा है। इस न्यायालय ने पिछले दो-तीन दशकों से अनुच्छेद 21 का निर्वचन करने में अनेक अधिकारों की घोषणा की है, जिनकी समीक्षा करने के बाद निष्कर्षित किया जा सकता है कि यदि कोई व्यक्ति अपने लिंग या अपनी लिंगीय विशेषता और मानसिक भाव का आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत ‘लिंग पुनर्स्थापना शल्य क्रिया’(Sex Re-assignment Surgery-SRS) के द्वारा परिवर्तन करा लेता है, तब ऐसी शल्य क्रिया के बाद बनाए गए पुनर्लिंग (Assigned Sex) को लिंगीय पहचान की मान्यता देने में कोई बाधा या रुकावट नहीं है। अतः ऐसा व्यक्ति भी पुरुष या स्त्री के रूप में मान्यता प्राप्त करने का संविधानिक अधिकार रखता है। वस्तुतः टीजी समूह भी देश के नागरिक हैं और उन्हें तृतीय लिंग की पहचान दी जानी चाहिए जिससे वे भी गरिमा और सम्मान के साथ अर्थपूर्ण ढंग से जीवन-यापन कर सकें और देश के अन्य नागरिकों की भांति मतदान के अधिकार, संपत्ति अर्जन के अधिकार, विवाह के अधिकार, पासपोर्ट, राशन कार्ड, वाहन-चालन अनुज्ञप्ति इत्यादि के माध्यम से औपचारिक पहचान प्राप्त करने के अधिकार, शिक्षा, नियोजन एवं स्वास्थ्य इत्यादि के अधिकार का दावा कर सकें। वास्तव में इन अधिकारों से इन वर्गों को वंचित रखे जाने का कोई कारण नहीं है। (इस शीर्षक के अंतर्गत निर्णय के अंश न्यायमूर्ति ए।के। सीकरी के हैं, जिन्होंने अन्य मामलों में इसके पूर्व न्यायमूर्ति के।एस। राधाकृष्णन के संपूर्ण तर्कों का समर्थन किया है)।

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