
उच्चतम न्यायालय ने किन्नरों को देश के संविधान के अंतर्गत एक ‘नागरिक’ और ‘व्यक्ति’ के अंतर्गत सम्मिलित करने के पीछे उन अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को भी विचार में लिया जो ‘मानव-प्राणी’ को मूल मानव अधिकार प्रदान करने के लिए राज्यों को उत्तरदायित्व सौंपते हैं। यद्यपि ये कानून किसी राज्य पर बाध्यकारी नहीं होते हैं किंतु यदि कोई देश ऐसे कानूनों पर एक सदस्य राज्य के रूप में हस्ताक्षर कर देता है, तब उनके मानकों को न्यायालय के माध्यम से लागू करवाया जा सकता है। इस आशय का निर्णय और उसके माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय कानून के प्रावधानों को देश के नागरिकों के पक्ष में लागू किए जाने का प्रश्न अनेक बार उच्चतम न्यायालय के समक्ष पहले भी आ चुका है। ऐसा ही एक मामला ग्रामोफोन कंपनी ऑफ इंडिया लि। बनाम वीरेंद्र बहादुर पांडेय का है, जिसमें न्यायालय ने इस विषय पर विधिक स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा था कि देश का न्यायालय अंतर्राष्ट्रीय कंवेंशनों को देश की वचनबद्धता के सिद्धांतों के अनुसार लागू कर सकता है जब तक कि ऐसा देश की विधि के स्पष्ट नियमों द्वारा वर्जित न हो और इस निर्णय का सहारा लेते हुए अन्य अनेक मामलों के साथ-साथ एप्रैल एक्सपोर्ट प्रो। काउंसिल बनाम ए।के। चोपड़ा (1999) 1 SCC 759 के मामले में भी अंतर्राष्ट्रीय कंवेंशन का प्रवर्तन देश में किया गया।
फिलहाल किन्नरों के पक्ष में जिन अंतर्राष्ट्रीय कंवेंशनों एवं कानूनों का सहारा लिया गया है उनमें मानव अधिकारों पर सार्वभौमिक घोषणा, 1948 के अनुच्छेद 1, 3, 5, 6, 7 और 12 के अंतर्गत प्रदत्त मूल मानव अधिकार, मानव अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा, 1966, योज्ञकर्ता सिद्धांत, 2006 तथा यूरोपीय कंवेंशन, 2006 और ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, दक्षिण अमेरिका में पारित किए गए हाल के वर्षों के कानून मुख्य हैं।
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