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Saeed Ahmad, Date of Birth : August 09, 1963 Birth Place : Kanpur Marital Status : Married Cadre : NCC Profession : Journalism (Media consultant, Web & Print)

Thursday, 11 June 2015

भारत में किन्नरों का इतिहास

भारत में किन्नरों का इतिहास देश के वैदिक और पौराणिक साहित्यों में इस वर्ग को ‘तृतीय प्रकृति’ का अथवा ‘नपुंसक वर्ग’ के रूप में संबोधित किया गया है अर्थात इनकी उपस्थिति वैदिक काल से मानी जा सकती है। रामायण काल में इस वर्ग की प्रत्यक्ष उपस्थिति का प्रमाण मिलता है, जिसके बारे में दो किंवदंतियां प्रचलित हैं-पहली यह कि भगवान श्रीराम ने वनवास के दौरान सभी ‘पुरुषों’ और ‘स्त्रियों’ को मार्ग से वापस कर दिया था, किंतु चूंकि यह वर्ग न तो पुरुष था और न ही ‘स्त्री’ अतः ये पूरे वनवास काल तक श्रीराम के साथ उनकी सहायता करते रहे। दूसरी यह कि यह वर्ग 14 वर्षों तक उसी स्थान पर भगवान श्रीराम की प्रतीक्षा करता रहा और श्रीराम के वापस आने पर उन्होंने जब इसका कारण पूछा तो इस वर्ग ने उत्तर दिया ‘‘प्रभु आपने केवल ‘पुरुष’ और ‘स्त्री’ को वापस जाने के लिए कहा था, किंतु हम न तो पुरुष हैं और न ही स्त्री’’। ऐसा कहा जाता है कि भगवान राम ने इनकी श्रद्धा एवं निष्ठा से प्रसन्न होकर बच्चों के जन्म एवं शादी-विवाह आदि शुभ अवसरों पर लोगों को आशीर्वाद देने की शक्ति प्रदान की। ऐसा माना जाता है कि तभी से बधाई देने की प्रथा आरंभ हुई जिसमें हिजड़े शुभ अवसरों पर नाचते-गाते हैं एवं अपना आशीष देते हैं। महाभारत काल में भी पांडव राजकुमार अर्जुन एवं नाग राजकुमारी उलुपी के पुत्र ‘अरावन’() का प्रसंग आता है। कुरुक्षेत्र युद्ध में पांडवों की विजय सुनिश्चित करने के लिए अरावन ने काली मां को अपना बलिदान देने का निश्चय किया था। काली मां को बलिदान देने से पूर्व अरावन ने भगवान कृष्ण से तीन वरदान मांगे थे। तीसरे वरदान में अरावन ने बलिदान के पूर्व अपने विवाह की इच्छा जतायी थी जिससे उसे दाह-संस्कार एवं अंतिम क्रिया-कर्म का अधिकार प्राप्त हो सके क्योंकि उस समय अविवाहितों को दफनाने की प्रथा थी। चूंकि कोई भी महिला ऐसे व्यक्ति से विवाह के लिए तैयार नहीं थी जो शीघ्र ही काल का ग्रास बनने वाला हो, इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं ही मोहिनी नामक एक सुंदर महिला का रूप धर अरावन से विवाह किया। तमिलनाडु के हिजड़ा समुदाय के लोग अरावन को अपना पूर्वज मानते हैं, इसी कारण उन्हें अरावनी भी कहा जाता है। जैन साहित्यों में भी ट्रांसजेंडर समुदाय का विस्तृत वर्णन है जिनमें ‘मनोवैज्ञानिक सेक्स’(Psychological Sex) की अवधारणा का उल्लेख मिलता है। मुगल शासन में हिजड़ों को राजदरबार में भी स्थान मिला था। संभवतः द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की कविता इसी या अन्य किसी घटना को प्रमाणित करती है। ब्रिटिश भारत में 18वीं शताब्दी में हिजड़ों ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी। अंततः ब्रिटिश सरकार को इन पर नियंत्रण के लिए अपराधी जनजातियां अधिनियम, 1871 पारित करके इस पूरे समुदाय को ही एक अपराधी और एडिक्टेड (Addicted) घोषित करना पड़ा। आजादी के बाद अगस्त, 1949 में इस कानून को निरस्त कर दिया गया। स्वतंत्र भारत में यह वर्ग अपने परंपरागत स्थान, महत्त्व और कार्य को कायम रखते हुए अस्तित्व में बना रहा, किंतु तब से लेकर आज तक इनकी प्रास्थिति एक नपुंसक (हिजड़ा) के रूप में होते हुए जन्म, विवाह आदि पर नाच-गाकर जीविका चलाने की रही है। न्यायालय के समक्ष लाए गए तथ्यों के आधार पर स्वयं खंडपीठ को भी निष्कर्षित करना पड़ा कि इस वर्ग को न तो शैक्षिक अधिकार प्राप्त हैं और न ही नियोजन का। सरकारी योजनाओं से वंचित किया जाना तथा इनके पेशे, कार्य एवं पहनावे को लेकर इनका लोगों व पुलिस द्वारा उत्पीड़न किया जाना इत्यादि इनकी दिनचर्या में शामिल होता जा रहा है। पंजाब में सभी किन्नरों को पुरुष माना जाता है, जिसे उच्चतम न्यायालय ने अवैधानिक घोषित कर दिया है। देश के राज्यों केरल, त्रिपुरा और बिहार में किन्नरों को ‘तृतीय-लिंग’ का दर्जा प्रदान किया गया है।

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