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Saeed Ahmad, Date of Birth : August 09, 1963 Birth Place : Kanpur Marital Status : Married Cadre : NCC Profession : Journalism (Media consultant, Web & Print)

Thursday, 11 June 2015

'अगले जनम मोहे हिजड़ा न कीजो'


'अगले जनम मोहे हिजड़ा न कीजो' बेटा घर का राज है तो बेटी घर की लाज. लेकिन दोनों का मिश्रित रूप किन्नर अर्थात हिजड़ा पैदा हो तो क्यों गिर जाती है सब पर गाज. इस नौनिहाल बच्चे को उसको जन्म देने वाले ही या तो फेंक देते है या फिर एसों के हाथों सौंप देते है जिनपर न तो इनको विश्वास होता है और न ही इस वर्ग की ये लोग इज्जत करते है. हद तक की उन्हें पसंद नहीं करते. सिर्फ लोकलाज का वास्ता समझकर अपने लखते जिगर को अनजान हाथों में दे देते है. अपने अरमानों, अपनी प्राथनाओं में पुत्र-पुत्री की कल्पना पाले यह समाज जितना उत्साह और उल्हास से भरा होता है वही उदास और खौफजदा क्यों हो जाता है. जिसे अपनों से प्यार दुलार मिलना चाहिए वह जन्म से ही तिरस्कार उसका भाग्य बन जाता है. जन्म से लेकर जीवनभर प्रताड़ना झेलने वाला हिजड़ा आखिर यही दुआ करेगा कि अगले जनम मोहे हिजड़ा ना कीजो. इसके लिए यह कई परम्पराओं को अपनाते भी है. जिनमे मरने के बाद मृतक को जूते अथवा झाडू छुलाने की परम्परा भी है. कुछ लोग इस्लाम धर्म भी अपना लेते है क्योंकि इस्लाम में पुनर्जन्म की मान्यता नहीं है. जबकि किन्नर के अर्धनारीश्वर यानी शिव उनके आराध्य देव हैं। लेकिन वे बहुचरा माता और अरावान (महाभारत के अर्जुन के पुत्र) की विशेष पूजा करते हैं। इनकी संख्या के बारे में सरकार के पास कोई आंकड़ा नहीं है। मोटा अनुमान है कि पूरे देश में इनकी तादाद 10-15 लाख होगी। बताते हैं कि पूरा हिजड़ा समुदाय सात घरानों में बंटा हुआ है। हर घराने का मुखिया एक नायक होता है जो चेलों की शिक्षा-दीक्षा के लिए गुरुओं की नियुक्ति करता है। ताली बजाना और लचक-मटक कर चलना हिजड़ों का स्वाभाविक गुण नहीं है। यह एक सीखी हुई ‘कला’ है। यह भी गौरतलब है कि कोई जान-बूझकर हिजड़ा नहीं बनता। वो जन्म से ही लैंगिक रूप से विकलांग होते हैं। देश के 90 फीसदी हिजड़े ऐसे ही हैं। केवल 10 फीसदी हिजड़े ऐसे हैं जो जन्म से होते तो पुरुष हैं, लेकिन दर्दनाक ऑपरेशन से उनके जननांग हटाये जाते हैं। इसके पीछे वैसे ही अपराधियों का हाथ होता है, जैसे अपराधी हाथ-पैर काटकर बच्चों से भीख मंगवाते हैं। पुराने भारतीय ग्रंथों में भी इन्हें तृतीय प्रकृति कहा गया है। सारी दुनिया में इनकी मौजूदगी है। लेकिन इनकी दुर्गति कमोवेश हर जगह ही है। ये एक तरह के विकलांग हैं। लेकिन विकलांगों जैसी कोई सहूलियत इन्हें नहीं मिलती। परिवार में जन्मते ही इन्हें फेंक दिया जाता है। फिर इन्हें अपने गुजारे के लिए अंधेरे और अंधविश्वासों से भरी ऐसी दुनिया में शरण लेनी पड़ती है जो शायद किसी शापित नरक से भी बदतर है। कहने को किन्नर या हिजड़े अब राजनीति में भी आ चुके हैं, लेकिन उनसे जुड़े मानवाधिकारों की चर्चा यदाकदा ही होती है। हिजड़ों को वोट देने का अधिकार भारत में 1994 में ही मिला। उसके बाद से 1999 में शहडोल से चुनकर आई शबनम मौसी देश की पहली किन्नर विधायक बनी। फिर तो कमला जान (कटनी की मेयर), मीनाबाई (सेहोरा नगरपालिका की अध्यक्ष), सोनिया अजमेरी (राजस्थान में विधायक), कमला बुआ मध्य प्रदेश के सागर की मेयर और आशा देवी (गोरखपुर की मेयर) सार्वजनिक हस्ती बन गईं। देहरादून के मेयर चुनावों में रजनी रावत नाम की किन्नर भी प्रत्याशी थी। इसके अतिरिक्त अभिनेत्री एवं माडल पद्मिनी प्रकाश ने एक समाचार चैनल पर समाचार वाचक की तरह शुरूआत की। अमृता अल्पेश सोनी को छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य में एचआईवी व एड्स पीड़ितों की देख रेख के लिए नोडल अधिकारी बनाया है। फैशन डिजायनर सिल्वी आधुनिक ब्यूटी पार्लर की श्रंखला चलाती है. लग्जरी जीवन जीती है. भारत सरकार के एक विभाग में किन्नर मणि थापा अपनी सेवाएँ दे रही है. सरकार की भेदभाव भरी नीतियों की वजह से काफी लोग अपनी पहचान छुपाकर नौकरी कर रहे है. जिनका खुलासा किसी घटना अथवा सेवानिर्वत्ति के बाद होता है. लेकिन राजनीति सहित अन्य क्षेत्रों में धमक के बावूजद समाज में हिजड़ों के खिलाफ भ्रम और हिंसा का बोलबाला है। और इस रवैये का स्रोत है अंग्रेज़ों के राज में बना 1871 का क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट, जिसमें 1897 में एक संशोधन के बाद स्थानीय शासन को आदेश दिया गया है कि वे सभी हिजड़ों के नाम और आवास का पूरा रजिस्टर रखें जो ‘बच्चों का अपहरण करके उनको अपने जैसा’ बनाते हैं, आईपीसी के सेक्शन 377 में आनेवाले अपराध करते हैं। ये गैर-जमानती अपराध है और इसमें छह महीने से लेकर सात साल तक की कैद हो सकती है। पुलिस आज भी आईपीसी के सेक्शन 377 के तहत जब चाहे, तब किन्नरों को अपने इशारों पर नचाती है। इस सेक्शन को खत्म करने की याचिका अभी तक कोर्ट में लंबित पड़ी है।

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